नई दिल्ली । देश में कई प्रदेशों के नेता वैसे तो करोड़ों के मालिक हैं मगर जब टैक्स देने की बात आती है तो वो वहां की स्थानीय सरकार की ओर देखते हैं। करोड़ों की संपत्ति के मालिक ये मुख्यमंत्री, सांसद और विधायक सरकार से मिलने वाली सेलरी और भत्तों के बाद उस पर टैक्स नहीं देना चाहते हैं ऐसे में सरकार को अपने खजाने से ही टैक्स अदा करना पड़ता है।
अभी तक राज्य सरकारें अपने खजाने से ही मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्रियों व विधायकों की सालाना इनकम पर टैक्स अदा कर रही थी। इससे प्रदेश सरकार के खजाने पर अतिरिक्त बोझ भी पड़ता है। अब कुछ प्रदेशों की सरकारों ने इस टैक्स को अदा करने से मना कर दिया और कहा कि इन नेताओं को अपना इनकम टैक्स खुद ही अदा करना पड़ेगा। इसके बाद कुछ प्रदेशों के नेता तो ऐसा करने के लिए राजी हो गए मगर अभी भी कुछ प्रदेशों के नेता अपने को इतना गरीब बता रहे हैं कि वो टैक्स अदा नहीं कर सकते जबकि चुनाव आयोग में जमा किए गए शपथ पत्र में उन्होंने अपनी करोड़ों की संपत्ति का खुले तौर पर जिक्र किया है।
राज्य सरकार अपने सरकारी खजाने से मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्रियों व विधायकों का सालाना चार करोड़ रुपये से अधिक का आयकर भर रही है। पूर्व विधायकों का भी करीब दो करोड़ रुपये आयकर सरकार ही चुका रही है। इन माननीयों का औसत वेतन (भत्तों सहित) ढाई लाख रुपये है। मंत्रियों का वेतन इनसे 15 से 20 हजार रुपये ज्यादा है। एक विधायक को साल में वेतन व भत्ता 30 लाख रुपये तक मिल जाता है। दस लाख रुपये से अधिक आय पर 30 फीसद के स्लैब रेट से आयकर लगता है।
कुल 68 विधायकों का वेतन 20 करोड़ रुपये से अधिक बनता है। इस आय पर करीब दो करोड़ की बचत के उपाय अपनाए जा रहे हैं। शेष आय पर सरकार आयकर चुका रही है। पहले यात्रा भत्ता अलग से ढाई लाख रुपये था। विधानसभा के मानसून सत्र में इसे बढ़ाकर चार लाख रुपये किया गया है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष का आयकर चुकाने की जिम्मेदारी विधानसभा निभाती आ रही है। मंत्रियों को वर्तमान में प्रति माह लगभग 4.40 लाख रुपये वेतन और भत्तों के रूप में मिल रहे हैं।
फिलहाल 7 राज्यों के सीएम और मंत्रियों ने अब तक अपना टैक्स अदा करने के लिए रजामंदी नहीं दी है। पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह ने मार्च 2018 में इस दिशा में कदम बढ़ाया था। यूपी भी अब इसे खत्म करने की कोशिश कर रहा है। इस वजह से राज्यों ने मंत्रियों के टैक्स को अपने कोष से अदा करने के लिए कहा है। एक नजर इन राज्यों के सीएम द्वारा अपने चुनावी हलफनामों में घोषित संपत्ति पर डालते हैं तो पता चल जाता है कि उनके पास कितना पैसा है मगर वो टैक्स नहीं अदा कर रहे हैं।