चांद पर मिला लैंडर विक्रम, अब आगे क्या? इसरो के सामने 10 सवाल

नई दिल्ली/ चंद्रयान-2 के चांद की सतह से महज 2 किलोमीटर दूर रास्ता भटकने के बाद रविवार को उसके चांद पर मिलने की खबर से थोड़ी उम्मीदें जगी। हालांकि, इसरो चीफ के सिवन ने साफ किया कि अभी लैंडर विक्रम से कोई संपर्क नहीं हो पाया है और यही बात इसरो के वैज्ञानिकों को परेशान कर रहा है। ऑर्बिटर द्वारा खींची गई थर्मल इमेज के बाद इसरो ने कल कहा था कि उसने लैंडर का सटीक लोकेशन का पता लगा लिया है। कहा जा रहा है कि लैंडर की हार्ड लैंडिंग हुई और उसकी स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अगर सबुकछ ठीक रहता तो रोवर प्रज्ञान अभी चांद के बारे में पूरी दुनिया को जानकारी दे रहा होता। ऐसे में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। आखिर अब आगे क्या होगा? क्या लैंडर से संपर्क स्थापित हो पाएगा? रोवर प्रज्ञान का क्या होगा? आइए जानते हैं ऐसे सवाल जो इसरो को दे रहे हैं


क्या लैंडर विक्रम क्रैश हो गया?
आंकड़ों के विश्लेषण से यह पता लगाया जाएगा कि 1,471 किलो वजनी विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग हुई या क्रैश लैंडिंग। दरअसल, विक्रम को 7 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से नीचे उतरना था। इसे 18 किमी की रफ्तार से उतरने तक के लिए प्रोग्राम किया गया था। अगर यह इससे तेज रफ्तार से टकराया होगा तो क्रैश लैंडिंग हुई होगी। एक आशंका यह भी है कि उलटकर विक्रम का रुख नीचे की तरफ हो गया हो, जिससे वह तेज रफ्तार से सतह से टकराया हो। ऐसे में इससे संपर्क मुश्किल होगा।

लैंडर के नुकसान को ठीक किया जा सकता है?
एक विशेषज्ञ ने हमारे सहयोगी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ के साथ बातचीत में बताया कि अगर हार्ड-लैंडिंग के बाद विक्रम चांद की सतह पर सीधा होगा और उसके उपकरणों को नुकसान नहीं पहुंचा होगा तो उससे दोबारा संपर्क स्थापित होने की उम्मीदें बरकरार रहेंगी। यानी चमत्कार की उम्मीद अभी भी है। लैंडर विक्रम के अंदर ही रोवर प्रज्ञान है, जिसे सॉफ्ट-लैंडिंग के बाद चांद की सतह पर उतरना था।

संपर्क की उम्मीद कब तक है?
इसरो चीफ के सिवन ने बताया कि लैंडर को खुद ही जगह ढूंढकर सतह पर उतरना था। इसमें इसरो सेंटर से कोई निर्देश नहीं मिलना था। इसी दौरान कुछ गड़बड़ हुई और विक्रम अपने रास्ते से भटककर खो गया। उतरने के आखिरी पलों में लैंडर ने सही से काम नहीं किया। इसकी वजह से उससे संपर्क टूट गया, जो अभी तक शुरू नहीं हो सका है। विक्रम से संपर्क साधने के लिए अगले 14 दिनों तक कोशिशें की जाती रहेंगी।

क्यों हुई हार्ड लैंडिंग?
दरअसल, हार्ड लैंडिंग टर्म का इस्तेमाल तब किया जाता है जब कोई स्पेसक्राफ्ट या अंतरिक्ष संबंधी कोई विशेष उपकरण ज्यादा तेज वर्टिकल स्पीड यानी लंबवत गति और ताकत से सतह पर पहुंचा हो। सॉफ्ट-लैंडिंग या नॉर्मल लैंडिंग में स्पेसक्राफ्ट या उपकरण धीमी और नियंत्रित गति से सतह पर उतरता है ताकि उसे नुकसान न पहुंचे। इसरो अब यह पता लगाने की कोशिश में जुटा है कि आखिर किन परिस्थितियों में लैंडर को हार्ड लैंडिंग करना पड़ा।

विक्रम के ट्रांसपोंडर का क्या होगा?
उधर, इसरो के एक सूत्र ने कहा कि अभी यह पता लगाना बाकी है कि विक्रम पर रखा ट्रांसपोंडर अभी भी पूरी तरह से सुरक्षित है या नहीं।

क्या 'अज्ञात' कारणों से राह भटका लैंडर?

इस बीच डेटा का विश्‍लेषण कर रहे एक वरिष्‍ठ वैज्ञानिक ने कहा कि इसरो की जांच में 'अज्ञात' या 'प्राकृतिक घटना' पर भी फोकस किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि हर ऐंगल को ध्यान में रखकर डेटा जुटाए जा रहे हैं।

ऑर्बिटर कब तक काम करेगा?
इसरो चीफ ने कहा कि चांद के चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर में एक्स्ट्रा फ्यूल है, जिससे उसकी लाइफ साढ़े सात साल तक हो सकती है। ऑर्बिटर हाई रिजॉल्यूशन की तस्वीरें भेजेगा, जिससे चंद्रमा के रहस्य समझने में मदद मिलेगी। वहां मौजूद मिनरल्स का पता लगाने में आसानी होगी। इसके अलावा, ध्रुवीय क्षेत्रों में पानी की तलाश में मदद मिल सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह चांद का एक नक्शा तैयार करेगा जो आगे के मिशनों में बहुत काम आएगा।

रोवर प्रज्ञान का क्या होगा?
लैंडर विक्रम के साथ ही उसमें मौजूद रोवर प्रज्ञान का भविष्य भी अधर में है। तय योजना के मुताबिक, लैंडर की चांद पर सॉफ्ट-लैंडिंग के बाद उसके अंदर से 6 पहियों वाला रोवर प्रज्ञान बाहर आता। 14 दिन यानी 1 ल्यूनर डे के अपने जीवनकाल के दौरान रोवर 'प्रज्ञान' चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलता। इसका काम चांद की सतह की तस्वीरें और विश्लेषण योग्य आंकड़े इकट्ठा करना था। वह इन्हें विक्रम और ऑर्बिटर के जरिए 15 मिनट में धरती को भेजता। 27 किलोग्राम का रोवर 6 पहिए वाला एक रोबॉट वाहन है। इसका नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसका मतलब 'ज्ञान' होता है।

अगले 12 दिन क्यों अहम?
चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पूरी तरह ठीक है और वह करीब 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित अपनी कक्षा में चांद की परिक्रमा कर रहा है। वह साढ़े 7 साल तक ऐक्टिव रहेगा और धरती तक चांद की हाई रेजॉलूशन तस्वीरें और अहम डेटा भेजता रहेगा। उस पर कैमरे समेत 8 उपकरण लगे हुए हैं जो अत्याधुनिक है। ऑर्बिटर का कैमरा तो अबतक के मून मिशनों में इस्तेमाल हुए कैमरों में सबसे ज्यादा रेजॉलूशन वाला है। ऑर्बिटर अगले 2 दिनों में उसी लोकेशन से गुजरेगा, जहां लैंडर से संपर्क टूटा था। अब तो लैंडर की लोकेशन की जानकारी भी मिल गई है। ऐसे में ऑर्बिटर जब उस लोकेशन से गुजरेगा तो लैंडर की हाई रेजॉलूशन तस्वीरें ले सकता है। ऑर्बिटर द्वारा भेजे गए डेटा के विश्लेषण से किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। अगले 12 दिनों में लैंडर की स्थिति से लेकर उससे जुड़े सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे।